अन्ना हजारे और उनकी टीम
अन्ना हजारे इतने चर्चित नहीं थे जितने की कुछ दिनों पहले उनके कारनामो ने उन्हें चर्चा में लाया। मैं खुद उनके बारे में बस कभी समाचार पत्रों में पढ़ा था। लेकिन भ्रस्टाचार के खिलाफ उनके मुहिम ने न ही उन्हें एक नयी पहचान दिलाई उनके प्रति हमारे दिल में इज्जत का भी इजाफा किया। आज के भारत में कहने के लिए युवा लोगों की भरमार है, लेकिन एक देश के युवा वर्ग से जो अपेच्छा होती है वह शायद ही कहीं से पूरा होता हुआ दिखाई देता है। सभी भ्रस्टाचार से तंग आ चुके हैं, राजनितिज्ञों की भर्त्सना करते हैं, गुंडाराज का बहिस्कार करने की बात करते हैं लेकिन ऐसा क्यों हैं की देश की जनता इतना जानते हुए भी इतनी निष्क्रिय हो चली है? इसका उत्तर ढूढ़ने से पता चलता है की आम जनता इतनी असहाय हो चुकी है की उनके बीच एक नेता की उत्पत्ति ही नहीं हो पा रही थी। अन्ना हजारे में हमें एक नेता दिखा जो ७३ साल की उम्र में भी वह जज्बा रखता है कि हम अपनी जान दे देंगे लेकिन देश से यह भ्रस्टाचर का नासूर हटा कर ही दम लेंगे। इस शख्श ने हमें रह दिखाई और हम, जो कि सालों से अपनी ब्यथा अपने अन्दर छुपाये थे, उसके साथ हो लिए। सरकार इसे अलोकतांत्रिक करार दे रही है लेकिन कोई भी क्रांति अलोकतांत्रिक ही कही जाती है। इसका कारण है कि सरकार के पास वह सभी हथकंडे होते हैं जो इस तरह के आन्दोलन को गणतंत्र के विरोध में बताकर दमन कर सकती है। अब क्रांति का बीज बोया जा चूका है और इसको पूरा पेड़ बनाना हमारा काम है। जिन लोगों के खिलाफ यह जन लोकपाल बिल बनाने कि तैयारी है वह लोग तो किसी तरह से अडंगा लगाने कि कोशिश करेंगे ही। हमें बस इतना करना है कि अपने नेता के एक आह्वान पर हम अपने आप को इस कारण को चरितार्थ करने के लिए समर्पित कर दें। जब हमनें एक बार मान लिया हैं कि भ्रस्ताचार को ख़त्म करना है तो अब पीछे नहीं हटाना है। पीछे हटने से पहले यह बात अवश्य ध्यान में रखनी होगी कि इस बार चुके तो भ्रष्टाचारियों के हौशले और बुलंद हो जायेंगे और आगे कि स्थिति और भयावह होगी। जहाँ हम अपने बच्चो को अच्छी तालीम देने कि बात करते हैं और जिंदगी में हर मोड़ पर नए आयाम छूने कि बात करते हैं वहीँ हमें यह भी सोचना होगा कि उनके लिए आने वाला भारत देश कैसा होगा अगर भ्रष्टाचार इसी तरह से परवान चढ़ता रहा। लेकिन इस बात का भी बखूबी ध्यान रखना पड़ेगा कि जन लोकपाल बिल ही सभी समस्या का समाधान नहीं है। हमें अपने निजी अस्तर पर भी इसका पालन करना होगा। हम सभी जानते हैं ही क्या सही है और क्या गलत, बस फर्क इतना होता है कि हम अपने आपको समझा बुझाकर एक ढर्रे पर चलना सिखा देते हैं। उदाहरण स्वरुप, हमारे अगल बगल कई ऐसे लोग हैं जिनको हम जानते है कि उनकी रईशी का कारण कुछ और नहीं बस घूस और कमीशन है। ऐसे लोगों को अगर हम इज्जत और आदर न दें तो क्या उनको ऐसी जिंदगी पसंद आएगी? नहीं। हर आदमी अपनी पहचान के लिए कुछ भी करता है और जो काम उसे पहचान न दे उसे करने में उसे कोई दिलचस्पी नहीं होगी। इसलिए यह जरूरी हो गया है कि अगर परोवर्तन लाना है तो हमें खुद बदलना पड़ेगा। परेशानी भी होगी और साथ में शायद कुछ सुखों से नाता भी तोडना पड़ेगा लेकिन येही एक रास्ता है जो हमारे देश को एक नयी पहचान और हमें और हमारी आने वाली पीढ़ियों को एक स्वच्छ समाज देगा।

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