गीली मिट्टी (अपरिपक्व व्यक्तित्व) को हाथों (दिए गए परिवेश) से संवार सकते हैं. लेकिन एक बार सूख जाने के बाद (सैद्धांतिक रूप से परिपक्व) अगर उसे ताकत के साथ संवारने की कोशिश करते हैं तो पूरी की पूरी कृति (व्यक्तित्व) टूट जाती है. कृति के इस तरह से टूटने में उसका गुनाह नहीं बल्कि उन हाथों का होता है जो बिना उसकी उपयोगिता के (रूपांतरित परिवेश में) उसे यह आकार प्रदान किया.


0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home