Monday, April 9, 2012

एक विधुर की जिंदगी

घर का बड़ा बेटा था
जिम्मेदारियों से दबा था 

जिंदगी के किसी मोड़े पर एक हमसफ़र की आस थी 
इसी से जिंदगी बस थोड़ी सी निराश थी 

जब हम पहली बार मिले थे 
मन की वादियों में फूल से खिल उठे थे 

हम विवाह बंधन में बंध चुके थे 
हमारी जिंदगी को कुछ मायने मिल गए थे

एक साल का साथ देकर
आप सुदूर चले गए हमें छोड़कर 

अब जिंदगी अकेले जीता हूँ
बस आपकी यादों को तराशता हूँ 

अब पचपन के पार हूँ
बस अपने दिल को स्वीकार हूँ

अब कुछ दिनों की बात है
फिर तो स्वर्ग का ही आत्मसात है

तब जब हम फिर मिलेंगे
स्वर्ग की वादियों में फिर से फूल खिलेंगे
 
एक विधुर की जिंदगी



2 Comments:

Blogger Ashish Tripathi said...

Great words...

May 26, 2012 at 10:27 PM  
Blogger Ashish Tripathi said...

Great words...

May 26, 2012 at 10:27 PM  

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