समाज में सहनशीलता
कहते हैं कि किसी समाज का चरित्र या गुण समय के साथ बदलता है और किसी एक दिशा में बढ़ता या घटता है। लेकिन जमशेदपुर में एक अलग ही संयोग देखने को मिल रहा है। यहाँ सामाजिक सहनशीलता और असहनशीलता एक साथ बढ़ती हुई नज़र आ रही है।
यहाँ सहनशीलता चरम पर दिखती है जब:
- बीच सड़क पर एसयूवी खड़ी कर बात करते हैं और हम अपना रास्ता ढूँढ़ने लगते लगते हैं।
- तीन सवारी बैठाकर मोटरसाइकिल वाला हाॅरन देते हुए तेज़ी से निकलते हुए भले ही जनता के लिए काल हो पर हम अपने आप को बचाने के रास्ते ढूँढते हैं।
- धुँआँ उगलती गाड़ियाँ मुँह पर धुँआँ छोड़कर चली जाती हैं और हम हाथों से अपने लिए आकसीजन की व्यवस्था करते हुए आगे बढ़ जाते हैं।
- छुटभैए गुंडे सरेआम समाज को धता बताते हुए अपनी मनमर्ज़ी करते हैं और हम सहमें हुए अपनी सहनशीलता का परिचय देते हैं।
यह सब हमारी नाकाम व्यवस्था की वजह से हो सकता है जिस पर हम अकेले लगाम नहीं लगा सकते। लेकिन इसी के साथ हम अपने दम पर कुछ कर गुज़रने की क्षमता रखते हैं अपनी असहनशीलता का परिचय भी देते हैं जब:
- कार पर हल्का निशान लग जाने से हम मार पीट पर उतारू हो जाते हैं और सामने वाले को उसकी जगह दिखाने के लिए तत्पर रहते हैं।
- मोटरसाइकिल वाले लाख ग़लत चलाते हों लेकिन दुर्घटना के बाद बड़ी गाड़ी वाले की पिटाई भी होगी और मुआवज़े के लिए चक्का भी जाम करेंगे।
- सड़क पर चाहे कितना भी जाम लगा हो हमें इतनी जल्दी होती है कि हम हाॅरन पर से हाथ ही नहीं खींच पाते।
- भले ही हम अगले पान की दुकान पर जाकर बस गप्प ही मारेंगे लेकिन वहाँ तक जाएँगे ८०-१०० किमी प्रति घंटे की रफ़्तार से।
इन दो विपरीत गुणों के पीछे एक सच है "मैं और मेरी इच्छा"। जहाँ हमारे ऊपर परतयक्ष असर पड़ता है हम असहनशील हैं, और जहाँ अपरतयक्ष दूरगामी सामाजिक असर हो सकता है हम बहुत ही सहनशील है।
अगर इस प्रकार की सहनशीलता जल्द असहनशीलता में तब्दील नहीं हुई तो समाज पर इसका दूरगामी असर होगा।

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