भ्रस्ताचारियों में उथल-पुथल
हम सभी ने देखा की जन साधारण के अभूतपूर्व एकता से सरकार किस तरह से भयभीत होती है। साथ में यह भी देखने को मिला और आने वाले दिनों में मिलेगा भी कि भ्रष्टतंत्र इतनी गहरी पैठ बना चुका है कि किसी तरह से जन लोकपाल बिल समिति के सिविल समाज के सदसयों को जनता कि नजर में इस तरह से लाना है कि जन साधारण उनका साथ छोड़ दे और समिति अपनी मनमानी तरीके से बिल बनाये या फिर उसको बनने ही न दे। लेकिन हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि इन सब बातों कि परवाह किये बिना समिति के सदस्यगन अपने द्वारा बनाये गए मसौदे पर कायम रहें। कांग्रेस का कहना कि कर्नाटक में लोकायुक्त क्या कर पाए इस बात का द्योतक है कि लोकायुक्त के पास इतनी शक्ति ही नहीं है। वह शक्ति हमें जन लोकपाल बिल के जरिये ही मुहैया करनी है। लोग कह रहे हैं कि इस बिल से कोई भ्रस्टाचार कम नहीं होने वाला है। लेकिन इस बात कि गारंटी है कि स्वयात्ताशाशी संस्था के होने से जरूर दंड पाने वालों कि संख्या में बृद्धि होगी और एक तरह का डर भ्रस्ताचरियों में आएगा। इसके बहुआयामी परिणाम होंगे। सुधरे हुए इनकम टैक्स के अधिकारीयों कि वजह से सरकारी खजाने में बढ़ोत्तरी होगी, कंपनियों द्वारा पर्यावरण विरोधी कारनामो में कमी आएगी, शिक्षा के छेत्र में व्याप्त भ्रस्टाचार से मुक्ति के बाद गांव में बच्चों को बेहतर शिक्षा मिलेगी, शहरों अतिक्रमण हटाओ कम होगा और प्लानिंग ज्यादा होगी, गैरकानूनी तरीके से होने वाले काम पैसो के बल पर होना थोड़ा मुश्किल होगा और सबसे बड़ी बात जो होगी वह यह कि हमारा युवा वर्ग शायद धीरे धीरे यह समझना शुरू करेगा कि एन केन प्रकारेण पैसा कमा लेने से ही जिंदगी सफल नहीं होती है। आज कि गुंडागर्दी और भ्रष्ट नेताओं के आगे पीछे दौड़ना, यह जानते हुए भी कि असल जिंदगी में नेता क्या करता है, इसी का नतीजा है। मुझे एक वाकया याद आया। यूनिवर्सिटी में एक लड़के ने कई लोगों को चाय पिलाया, मुझे भी, और बिना पैसे दिए दुकानदार को हाथ हिला के चल दिया। मैं पूछा "क्या भाई पैसा नहीं देना है?" जबाब मिला "नहीं भैया हम पैसे देने लगे तो हो चुका।" मेरे मुह से अनायास निकला " अरे तब तो तुम स्टुडेंट्स यूनियन का चुनाव लड़ने के लायक हो गए।" सरपट फिर से उसने कहा " भैया इसी साख कि वजह से तो हम अगला चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं।" आज यह ही हो रहा है। जिस दिन कोई इस मुकाम को पा लेता है कि लोग उससे डर के मारे अपना हक़ न मांगे, वह अपने आप को जीता हुआ महसूस करता हैं और जीत भी जाता हैं। अब यह हमारी जिम्मेदारी है कि आदमी के बाहुबल से नहीं उसके पाक चरित्र से डरें। तभी हमारा समाज आगे बढ़ पायेगा।
