Sunday, April 21, 2019

भीड़तंत्र का बोलबाला

भीड़तंत्र का बोलबाला 

मानव प्रकृति या कहें व्यवहार अकेले में एक और भीड़ में अलग होता है। इस व्यावहारिक परिवर्तन का पहला कारण यह है कि अकेले में किया हुआ कोई कार्य उस मनुष्य के खुद की जिम्मेदारी होती है जबकि एक भीड़ में उसके व्यवहार को कई लोग मिलकर प्रभावित करते हैं। किसी गलत कार्य की सज़ा अगर अकेले को मिलने वाली है तो एक डर का एहसास मनुष्य के अंदर बना रहता है। लेकिन अगर गलती एक भीड़ ने की है तो भीड़ के सभी लोग जिम्मेदार माने जाते हैं और इस तरह से मनुष्य को लगता है कि जो होगा सबके साथ होगा, लोग बचने की कोशिश तो करेंगे ही, इतने लोगों को एक साथ सज़ा तो नहीं हो सकती, उसकी पहुँच तो बहुत ऊपर तक है हम बच ही जायेंगे। इसके अलावा, ऊपर दिए गए कारणों की वजह से, भीड़ में उन्माद पैदा किया जा सकता क्योंकि भीड़ का इकठ्ठा होना और उसके प्रयोजन को किधर भी मोड़ा जा सकता है। अभी कुछ दिनों से समाचार आ रहे हैं कि भीड़ ने अलग-अलग राज्यों में कई लोगों को इतना पीटा कि उनका देहांत हो गया। एक विचारधारा यह आ रही है कि व्हाट्सएप्प एक ऐसा माध्यम बनता जा रहा है कि लोगों को अफ़वाह फ़ैलाने में सहूलियत मिल रही है और भीड़ को इकठ्ठा करना तथा उन्माद जगाना आसान बन गया है। समाचार यह भी है कि इन सभी हत्यायों में ख़ासकर बच्चाचोर क़रार देकर लोगों को मारा गया है।

एक लोकतांत्रिक देश में इस तरह के व्यावहारिक उत्पत्ति का क्या कारण हो सकता है? क्या मानव की यही प्रवृत्ति  है? क्या यह उसका प्राकृतिक व्यवहार है ? अगर ऐसा होता तो इस तरह के व्यवहार को सब लोग सराहनीय दृष्टि से क्यों नहीं देखते ? क्यों इस व्यवहार को चारों तरफ नकारात्मक दृष्टिकोण से देखा जा रहा है? इसका सीधा मतलब है कि प्यार में विश्वास रखने वाला सम्पूर्ण प्राणी जगत (और इसके साथ मनुष्य भी) इस तरह के भीड़ तंत्र में विश्वास नहीं रखता होगा। तब बात आती है कि ऐसा मनुष्य चरित्र तब कहाँ से पैदा होता है और उन लोगों की क्या सोच होती होगी जो ऐसे कृत्यों को कर गुजरने में कोई गुरेज़ नहीं करते।

- क्रमशः

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