Sunday, January 29, 2017

देश और सामाजिक बदलाव

नई सरकार, नई सोच, नये कार्य और कार्य करने के तरीके, दुनिया में भारत को एक नये मुकाम तक पहुँचाने की तमन्ना। नई ऊर्जा के साथ कुछ आमूलचूल परिवर्तन के निर्देश और देश की अर्थब्यवस्था को नै ऊंचाई तक ले जाना। यह सब बातें मैं अपनी नई सरकार के लिए कह रहा हूँ और वह भी बड़ी ही आशा संजोये हुए। इंटरनेट पर भी सरकार ने एक नै पहल की है। जिसके तहत देश की जनता सरकार को अपने नए सोच से अवगत करा सकती है और सरकार के पालिसी को प्रभावित कर सकती है। यह सब आज मुझे बहुत सुकून देता है।

लेकिन क्या देश की अर्थव्यवस्था ठीक होने से क्या सब ठीक हो जायेगा ? क्या गरीब ख़त्म हो जायेंगे ? सभी को भर पेट खाना मिलेगा? क्या सभी के बच्चे समान तरीके से शिक्षा पा पाएंगे ? भ्रस्टाचार देश से मिट जायेगा ? अस्पताल में सभी को मनचाही चिकित्सा व्यवस्था हो पायेगी ? क्या नैतिक मूल्यों में और इजाफा की आशा की जा सकती है ? औरत की अस्मिता से खेलने वाले कम हो जायेंगे ? भ्रूण हत्या ख़त्म हो जायेगी ? क्या हम देश को दीमक की तरह अंदर से खोखला करने वाले सामंतवादी प्रथा से निजात प् सकेंगे ? क्या जाति और धर्म में बंटे देश के नागरिक एक हो जायेंगे? क्या देश की जनसंख्या पर काबू किया जा सकेगा ? क्या हमें साफ़ सफाई से रहना और दूसरों को रहने देना आ जायेगा ? क्या अर्थव्यवस्था हमें यातायात के नियम पालन करना सिखा देगी ?

जी हाँ, उपरोक्त कुछ प्रश्नों के उत्तर तो सुदृढ़ अर्थव्यवस्था में है। परन्तु किसी देश का विकास बस सरकार के अच्छे होने और उसके कर्मो से नहीं होता। देश की हर जनता को अपने स्तर पर देश के निर्माण में भागीदारी सुनिश्चित करनी पड़ेगी। यह तभी होगा जब समाज का मानसिक उत्कर्ष हो। सरकार और जनता का अपने हर कर्म पर मुनाफ़े और घाटे के आंकलन से सामाजिक और मानसिक उत्कर्ष की बात तो सोचना बेमानी होगी। 

0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home