लोकतांत्रिक सुशासन
शासन, वह भी सुशासन !!!! एक लोकतांत्रिक सुशासन में सरकार की हमेशा यह कोशिश रहती है कि देश के नागरिक एक सहूलियत भरी जिंदगी बसर करें। लेकिन कुछ कारणों वस देश की जनता अपने ही तथाकथित नुमाइंदों के हाथों या फिर उनके ही जैसे फेहरिस्त वालों के हाथों ठगी जाती हुई प्रतीत होती है। हमारे देश में हजारों कानून होने के बावजूद भी यह हालात हैं कि नियम और कानून का उल्लंघन करने वालों या कहें कि 'बिन पेंदी के लोटों' के लिए जिंदगी ज्यादा सहूलियत भरी है और वह सभी जो अपने जीवन में देश और समाज के प्रति जबाबदेही को ध्यान में रखते हुए अपने आपको कुछ सिध्दांतो से बाँध लेते हैं, और उससे टस से मस नहीं होते, उनका जीवन का हर पल भारी जद्दोजहद से परिपूर्ण होता है।
इसलिए मुझे ऐसा महसूस होता है कि किसी भी सरकार के कार्यकाल को सुशासन तभी माना जाना चाहिए जब उसके शासनकाल में नियम और क़ानून मानने वालों की जिंदगी व्यक्तिगत, भावनात्मक, सामाजिक और आर्थिक रूप से सरल बनती है। हर मनुष्य जीवन का सरलीकरण चाहता है और यही नहीं मिलने पर वह येन केन प्रकारेण किसी सरल रास्ते (अर्थात भ्रस्टाचार, नियम उल्लंघन इत्यादि) की ओर रुख करता है जिससे उसकी जद्दोजहद कम हो सके। जब तक समाज और देश में धन और विलास पूजनीय होगा तब तक किसी भी तरह का नया प्रादुर्भाव अकल्पनीय है।
इसका एक समाधान जो नज़र आता है वह है "शासन को अविश्वास से अधिक विश्वास पर आधारित होना चाहिए"
इसलिए मुझे ऐसा महसूस होता है कि किसी भी सरकार के कार्यकाल को सुशासन तभी माना जाना चाहिए जब उसके शासनकाल में नियम और क़ानून मानने वालों की जिंदगी व्यक्तिगत, भावनात्मक, सामाजिक और आर्थिक रूप से सरल बनती है। हर मनुष्य जीवन का सरलीकरण चाहता है और यही नहीं मिलने पर वह येन केन प्रकारेण किसी सरल रास्ते (अर्थात भ्रस्टाचार, नियम उल्लंघन इत्यादि) की ओर रुख करता है जिससे उसकी जद्दोजहद कम हो सके। जब तक समाज और देश में धन और विलास पूजनीय होगा तब तक किसी भी तरह का नया प्रादुर्भाव अकल्पनीय है।
इसका एक समाधान जो नज़र आता है वह है "शासन को अविश्वास से अधिक विश्वास पर आधारित होना चाहिए"

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