Friday, September 16, 2016

छात्र स्कूल के लिए देर से उठा

एक दसवीं का छात्र एक दिन विद्यालय में अनुपस्थित था और इस वजह से उसे अध्यापक को आवेदन देकर एक दिन की छुट्टी की मांग करनी पड़ी। उसने लिखा की उस दिन ज्यादा देर तक सोने की वजह से देर हो गयी और वह देर से विद्यालय आने के बजाय घर पर ही रहना सही समझा। जब आवेदन प्रधानाचार्य के पास पहुंचा तो उन्हें इस कारण को स्वीकार करने में दुविधा हुई। क्योंकि प्रधानचार्य ने ऐसा कारण कभी देखा ही नहीं या शायद कोई ईमानदारी से लिखा ही नहीं। अतः उन्होंने शिक्षक को कहा कि उस छात्र से बोलिए की यह कारण स्वीकार्य नहीं है इसलिए उसे लिखना पड़ेगा की उसकी तबियत ख़राब हो गयी इसलिए वह नहीं आ सका। छात्र ने ऐसा ही किया और साथ में विद्यालय के प्रधानाचार्य से यह भी सन्देश लिया कि सच्चाई से कही हुई बात हमेशा स्वीकार्य नहीं होती। इस सन्देश के जड़ में क्या है?
एक प्रधानाचार्य जैसे पद की नियुक्ति के समय इस बात का ध्यान रखा जाता है की वह शिक्षित है और विवेकशील है। लेकिन उसको नियमो और शर्तो में इस कदर बाँध दिया जाता है कि वह अपने विवेक का उपयोग न करके उसी ढर्रे पर चलना सीख लेता है जैसा हमेशा से होता आया है। यह दशा अमूमन देश के हर दफ्तर में मौजूद है।
क्या छात्र के दिए हुए कारण को स्वीकार करते हुए उसे दोबारा ऐसा न होने की हिदायत देकर छोड़ा नहीं जा सकता था ? कम से कम एक गलत सन्देश जाने से रोक ने के लिए!!!

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