प्रसाशन और नियम पालन
हमारा जिला प्रसाशन हर सामाजिक समस्या के निराकरण के लिए अभियान चलाता है जैसे कि स्कूल की गाड़ियों में कितने बच्चे, ड्राइविंग लाइसेंस, पौधारोपण, यातायात सुधार, अतिक्रमण, हेलमेट परीक्षण, बस परमिट आदि। लेकिन यह देखा गया है की जैसे ही अभियान समाप्त हुआ, सब जस का तस। दुकानें फिर वैसे ही अतिक्रमण करती हैं, लोग बिना हेलमेट के ही चलते हैं, स्कूल की गाड़ियाँ फिर क्षमता से ज्यादा बच्चे ले जाती हैं, यातायात में कोई सुधार नहीं होता। अब प्रसाशन क्या करे ? कोशिश तो पूरी करते हैं, वह भी खासकर तब जब तीज त्यौहार का पर्व नजदीक हो। कहते हैं कि कितने भी अभियान चलाते हैं लेकिन जनता है कि सुधरती ही नहीं। अब इनको कौन समझाए कि भइया या तो जनता गीता का अनुसरण करे तब आपकी बात समझेगी या फिर उसके ऊपर निरन्तर आपका कड़ा पहरा रहे। गीता के एक भी अध्याय के अनुसरण की आशा रखना तो बेमानी होगी, खासकर आज के नाच-गाना को तवज्ज़ो देने वाले समाज से। अब बचा आपका कड़ा पहरा। लेकिन आप तो बस कुछ दिनों का अभियान चलाकर मुक्ति पाना चाहते हैं और बाकी समय सभी को नियमों का धता बताने के लिए खुला छोड़ देते हैं।
हमें पता है कि आपके पास इतने संसाधन नहीं हैं कि आप अभियान से ज्यादा कुछ कर पाएं। लेकिन आपको मानना पड़ेगा कि नियम सबको पता है, सही गलत का अंतर सबको पता है और सभी समझ गए हैं कि पकडे जाने पर कुछ ज्यादा होना नहीं है और पकड़ने वाले तो बस अभियान में ही सक्रिय होते हैं। यह नियम का उल्लंघन सिर्फ और सिर्फ मनोवैज्ञानिक कारणों से होता है। क्योंकि उसी नियम तोड़ने वाले को जब खुद को परेशानी होती है तो वही कहता है कि यह तो नियम के विरुद्ध है।
तो अब लोगों को नियम मानने के लिए बाध्य कैसे करें? एक बहुत ही मामूली सा उदहारण लेते हैं। शहर में ५ किलोमीटर का रास्ता तय करने में करीब २५-३० लोग गाड़ी चलाते समय फ़ोन पर बात करते हुए मिल जायेंगे, जबकि हर को पता है की ऐसा नहीं करना चाहिए। यह करते हुए तथाकथित संभ्रांत लोग ज्यादा दिखते हैं। इस समस्या के समाधान के लिए बस एक काम करना है। आप अपने अच्छे अधिकारियों में से पाँच को सादे लिबास में सड़कों पर छोड़ दीजिये और कह दीजिये कि रोज हमें कम से कम १० मोबाइल पर बात करने वाले केस, ५ तेज रफ़्तार के केस, ५ ट्रैफिक लाइट का उल्लंघन का केस और ५ गाड़ियों के धुआँ उगलने के केस रसीद के साथ दीजिये। इस नियम को बनाने के बाद समय-समय पर इसका पुनरीक्षण भी करें और कार्यान्यवन में किसी बाधा को ठीक भी करें। हाँ, इसमें पहली शर्त होगी कि आप सचमुच सुधार लाना चाहते हैं। इन सभी के नामों को रोज एक दैनिक में छपवाइए। इस प्रक्रिया में आपका संसाधन भी कम लगा, सरकारी खजाने में बढ़ोतरी भी हुई और नियम तोड़ने वालों को दंड भी मिला। इसी तरह आप हर उस क्षेत्र में काम कर सकते हैं जहाँ नियम के पालनकर्ताओं की कमी होती जा रही है।
सबसे बड़ा काम यह हुआ कि आपने लोगों के अंदर एक बड़ा मानसिक परिवर्तन किया और वह यह कि नियम तोड़ते हुए पकड़ लिए गए तो दंड मिलेगा ही। धीरे-धीरे जब यह बात जनता की आदत में शुमार हो जाएगी तो आपको ज्यादा कोशिश नहीं करनी पड़ेगी और समाज में एक अलग तरह की सोच उभरेगी जो हमारी अगली पीढ़ी के लिए भी अच्छी होगी।
हमें पता है कि आपके पास इतने संसाधन नहीं हैं कि आप अभियान से ज्यादा कुछ कर पाएं। लेकिन आपको मानना पड़ेगा कि नियम सबको पता है, सही गलत का अंतर सबको पता है और सभी समझ गए हैं कि पकडे जाने पर कुछ ज्यादा होना नहीं है और पकड़ने वाले तो बस अभियान में ही सक्रिय होते हैं। यह नियम का उल्लंघन सिर्फ और सिर्फ मनोवैज्ञानिक कारणों से होता है। क्योंकि उसी नियम तोड़ने वाले को जब खुद को परेशानी होती है तो वही कहता है कि यह तो नियम के विरुद्ध है।
तो अब लोगों को नियम मानने के लिए बाध्य कैसे करें? एक बहुत ही मामूली सा उदहारण लेते हैं। शहर में ५ किलोमीटर का रास्ता तय करने में करीब २५-३० लोग गाड़ी चलाते समय फ़ोन पर बात करते हुए मिल जायेंगे, जबकि हर को पता है की ऐसा नहीं करना चाहिए। यह करते हुए तथाकथित संभ्रांत लोग ज्यादा दिखते हैं। इस समस्या के समाधान के लिए बस एक काम करना है। आप अपने अच्छे अधिकारियों में से पाँच को सादे लिबास में सड़कों पर छोड़ दीजिये और कह दीजिये कि रोज हमें कम से कम १० मोबाइल पर बात करने वाले केस, ५ तेज रफ़्तार के केस, ५ ट्रैफिक लाइट का उल्लंघन का केस और ५ गाड़ियों के धुआँ उगलने के केस रसीद के साथ दीजिये। इस नियम को बनाने के बाद समय-समय पर इसका पुनरीक्षण भी करें और कार्यान्यवन में किसी बाधा को ठीक भी करें। हाँ, इसमें पहली शर्त होगी कि आप सचमुच सुधार लाना चाहते हैं। इन सभी के नामों को रोज एक दैनिक में छपवाइए। इस प्रक्रिया में आपका संसाधन भी कम लगा, सरकारी खजाने में बढ़ोतरी भी हुई और नियम तोड़ने वालों को दंड भी मिला। इसी तरह आप हर उस क्षेत्र में काम कर सकते हैं जहाँ नियम के पालनकर्ताओं की कमी होती जा रही है।
सबसे बड़ा काम यह हुआ कि आपने लोगों के अंदर एक बड़ा मानसिक परिवर्तन किया और वह यह कि नियम तोड़ते हुए पकड़ लिए गए तो दंड मिलेगा ही। धीरे-धीरे जब यह बात जनता की आदत में शुमार हो जाएगी तो आपको ज्यादा कोशिश नहीं करनी पड़ेगी और समाज में एक अलग तरह की सोच उभरेगी जो हमारी अगली पीढ़ी के लिए भी अच्छी होगी।


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